sábado, 17 de abril de 2010

Atmananda


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Fotos de Rohan Shanti Shukla



Rohan Shanti Shukla

Kamika Ekadashi
Shravan Krishna Paksh....... Jul - Aug


Yudhishthir said: "Hey Govinda, hey vaasudeva, greetings to you .Which is the ekadashi of the month of shravan krishna paksh.? please elaborate."

Lord Krishna said: Hey King, listen, I tell you a story that destroys the sins, which was told by Brahmaji to Naaradji when he was asked by him."

Naaradji asked: Hey Lord,hey Kamalaasana{sitting on the lotus}, I want to know the story of Shravan Krishna Paksh, what is it's name....and things related to it, please elaborate."

Brahmaji said, :" Hey Naarada, listen, the ekadashi on Shravan Krishna Paksh, is known as Kaamika Ekadashi.Even if one thinks about it, he gets the good karma equivalent to Vaajpayee Yagna. On that day one should pray the Lord by chanting the names as Shridhar, Hari, Vishnu, Madhusudan, Madhav.

The holy result that one gets by worshipping Lord Krishna, is much more than that which one gets in Ganga, Pushkar, Naimisharanya pilgrimages.

If one gives the charity of the whole earth,including jungles and oceans, and he keeps the fast of Kamika Ekadashi, both the karmas are considered equal.

If one gives alms of cows, along with other things, the good karma is equivalent to the fast of Kamika Ekadashi.A pious person who worships Lord Shridhara in the month of Shraavan he has worshiped all the deities and divine beings.

Hence religious people should worship Shi Hari and keep the fast of Kamika Ekadashi.Those who are sinking in the sea of sansaara{worldly things}, for them Kaamika Ekadashi is the best.


The person who keeps this fast gets the good karma even more than those who study spiritual books and want to earn spiritual knowledge by them.Aperson who keeps this fast never sees the envoys of death, or his catastrophe


Lord is not pleased with the worship alongwith the red gems, pearls,corals, but with the leaves of Tulsi,Aperson who has worshipped the Lod Vishnu with Tulsi, all the sins of his birth are destroyed.



या दृष्टा निखिलाघसंघशमनी स्पृष्टा वपुष्पावनी
रोगाणामभिवन्दिता निरसनी सिक्तान्तकत्रासिनी ।
प्रत्यासत्तिविधायिनी भगवत: कृष्णस्य संरोपिता
न्यस्ता तच्चरणे विमुक्तिफलदा तस्यै तुलस्यै नम: ॥




ya drishtaa nikhilaaghsanghashamanee sprishtaa vapushpaavani
rogaanamabhivandeeta nirasani siktaantaktraasini
pratyasattividhayini bhagvataha krishnasya sanropitaa
nayastaa tatcharney vimuktifaldaa tasyayee tulasayayee namaha


"Which destroys all the sins with its Darshan,purifies the body with its touch,takes away all the ailments, diseases by simply greeting to it, scares even the God of death while being nourished by water. takes one nearer to lord Krishna by simply being planted,and provides deliverance by being offered to the feet of the Lord, we salute that Devi Tulsi"


Even chitragupta{minister of God of death who counts the sins and good karmas of the dead} does not know the holy karmas done by a person who gives charity of the deepas{lamps}.On the day of Ekadashi, whos lamp is lightening in front of krishna, all his ancestors attain heaven and have amrit{nectar}. By lighting a deepa, lamp in front of krishna, with the fuel of butter, or oil of seasame, that soul goes to heaven with being welcomed by millions of lamps after his death."

Lord Krishna says," Hey yudhishthir, I have elaborated the glory of Kamika Ekadashi. It destroys the sins and hence one should keep this fast, It provides one with heaven and good karmas. A person who listens to this glory of kamika ekadashi, attains Vishnuloka after his death and all his sins are destroyed."




कामिका एकादशी

युधिष्ठिर ने पूछा: गोविन्द ! वासुदेव ! आपको मेरा नमस्कार है ! श्रावण (गुजरात महाराष्ट्र के अनुसार आषाढ़) के कृष्णपक्ष में कौन सी एकादशी होती है ? कृपया उसका वर्णन कीजिये ।

भगवान श्रीकृष्ण बोले: राजन् ! सुनो । मैं तुम्हें एक पापनाशक उपाख्यान सुनाता हूँ, जिसे पूर्वकाल में ब्रह्माजी ने नारदजी के पूछने पर कहा था ।

नारदजी ने प्रश्न किया: हे भगवन् ! हे कमलासन ! मैं आपसे यह सुनना चाहता हूँ कि श्रवण के कृष्णपक्ष में जो एकादशी होती है, उसका क्या नाम है? उसके देवता कौन हैं तथा उससे कौन सा पुण्य होता है? प्रभो ! यह सब बताइये ।

ब्रह्माजी ने कहा: नारद ! सुनो । मैं सम्पूर्ण लोकों के हित की इच्छा से तुम्हारे प्रश्न का उत्तर दे रहा हूँ । श्रावण मास में जो कृष्णपक्ष की एकादशी होती है, उसका नाम ‘कामिका’ है । उसके स्मरणमात्र से वाजपेय यज्ञ का फल मिलता है । उस दिन श्रीधर, हरि, विष्णु, माधव और मधुसूदन आदि नामों से भगवान का पूजन करना चाहिए ।

भगवान श्रीकृष्ण के पूजन से जो फल मिलता है, वह गंगा, काशी, नैमिषारण्य तथा पुष्कर क्षेत्र में भी सुलभ नहीं है । सिंह राशि के बृहस्पति होने पर तथा व्यतीपात और दण्डयोग में गोदावरी स्नान से जिस फल की प्राप्ति होती है, वही फल भगवान श्रीकृष्ण के पूजन से भी मिलता है ।

जो समुद्र और वनसहित समूची पृथ्वी का दान करता है तथा जो ‘कामिका एकादशी’ का व्रत करता है, वे दोनों समान फल के भागी माने गये हैं ।

जो ब्यायी हुई गाय को अन्यान्य सामग्रियों सहित दान करता है, उस मनुष्य को जिस फल की प्राप्ति होती है, वही ‘कामिका एकादशी’ का व्रत करनेवाले को मिलता है । जो नरश्रेष्ठ श्रावण मास में भगवान श्रीधर का पूजन करता है, उसके द्वारा गन्धर्वों और नागों सहित सम्पूर्ण देवताओं की पूजा हो जाती है ।

अत: पापभीरु मनुष्यों को यथाशक्ति पूरा प्रयत्न करके ‘कामिका एकादशी’ के दिन श्रीहरि का पूजन करना चाहिए । जो पापरुपी पंक से भरे हुए संसार समुद्र में डूब रहे हैं, उनका उद्धार करने के लिए ‘कामिका एकादशी’ का व्रत सबसे उत्तम है । अध्यात्म विधापरायण पुरुषों को जिस फल की प्राप्ति होती है, उससे बहुत अधिक फल ‘कामिका एकादशी’ व्रत का सेवन करनेवालों को मिलता है ।
‘कामिका एकादशी’ का व्रत करनेवाला मनुष्य रात्रि में जागरण करके न तो कभी भयंकर यमदूत का दर्शन करता है और न कभी दुर्गति में ही पड़ता है ।

लालमणि, मोती, वैदूर्य और मूँगे आदि से पूजित होकर भी भगवान विष्णु वैसे संतुष्ट नहीं होते, जैसे तुलसीदल से पूजित होने पर होते हैं । जिसने तुलसी की मंजरियों से श्रीकेशव का पूजन कर लिया है, उसके जन्मभर का पाप निश्चय ही नष्ट हो जाता है ।

या दृष्टा निखिलाघसंघशमनी स्पृष्टा वपुष्पावनी
रोगाणामभिवन्दिता निरसनी सिक्तान्तकत्रासिनी ।
प्रत्यासत्तिविधायिनी भगवत: कृष्णस्य संरोपिता
न्यस्ता तच्चरणे विमुक्तिफलदा तस्यै तुलस्यै नम: ॥

‘जो दर्शन करने पर सारे पापसमुदाय का नाश कर देती है, स्पर्श करने पर शरीर को पवित्र बनाती है, प्रणाम करने पर रोगों का निवारण करती है, जल से सींचने पर यमराज को भी भय पहुँचाती है, आरोपित करने पर भगवान श्रीकृष्ण के समीप ले जाती है और भगवान के चरणों मे चढ़ाने पर मोक्षरुपी फल प्रदान करती है, उस तुलसी देवी को नमस्कार है ।’

जो मनुष्य एकादशी को दिन रात दीपदान करता है, उसके पुण्य की संख्या चित्रगुप्त भी नहीं जानते । एकादशी के दिन भगवान श्रीकृष्ण के सम्मुख जिसका दीपक जलता है, उसके पितर स्वर्गलोक में स्थित होकर अमृतपान से तृप्त होते हैं । घी या तिल के तेल से भगवान के सामने दीपक जलाकर मनुष्य देह त्याग के पश्चात् करोड़ो दीपकों से पूजित हो स्वर्गलोक में जाता है ।’

भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं: युधिष्ठिर ! यह तुम्हारे सामने मैंने ‘कामिका एकादशी’ की महिमा का वर्णन किया है । ‘कामिका’ सब पातकों को हरनेवाली है, अत: मानवों को इसका व्रत अवश्य करना चाहिए । यह स्वर्गलोक तथा महान पुण्यफल प्रदान करनेवाली है । जो मनुष्य श्रद्धा के साथ इसका माहात्म्य श्रवण करता है, वह सब पापों से मुक्त हो श्रीविष्णुलोक में जाता है ।
Añadida el 29 de enero

The paduka worn by Praan Thakur Sri RadhaRaman Charan Das Dev.
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Añadida el 05 de agosto

My praan Prabhu......
Sri Radharaman Charan Das Dev
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Añadida el 05 de agosto

My praan Prabhu......
Sri Radharaman Charan Das Dev
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Añadida el 05 de agosto

NITAI CHAND AT HIS MANJARI BHAAV.
Añadida el 05 de agosto

SRI YUGAL SARKAR
Añadida el 05 de agosto

प्रेम के रंग बिना रंग सभी फीके हैं,
जिसको मिल जाए ये वो मालामाल हो जाए ॥

न हो जहां बैर-भाव ऎसे मीत पाएं सब,
दिल में खिलें गुलाब ऎसी प्रीत पा जाए ॥

नाचे मीरा सी कोई , कोई पुजारिन राधा,
और गिरिराज भी घनश्याम स्वयं बन जाए ॥

कृष्ण की बंशी बजे गोपियों की थिरकन हो,
यहीं गोकुल यहीं पे वृन्दावन बन जाए ॥

आओ सब मिलकर रंगों में डूब जाएं हम
प्रेम ही प्रेम हो बस प्रेम ही बरसा जाएं ................
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Añadida el 05 de agosto

प्रेम के रंग बिना रंग सभी फीके हैं,
जिसको मिल जाए ये वो मालामाल हो जाए ॥

न हो जहां बैर-भाव ऎसे मीत पाएं सब,
दिल में खिलें गुलाब ऎसी प्रीत पा जाए ॥

नाचे मीरा सी कोई , कोई पुजारिन राधा,
और गिरिराज भी घनश्याम स्वयं बन जाए ॥

कृष्ण की बंशी बजे गोपियों की थिरकन हो,
यहीं गोकुल यहीं पे वृन्दावन बन जाए ॥

आओ सब मिलकर रंगों में डूब जाएं हम
प्रेम ही प्रेम हो बस प्रेम ही बरसा जाएं ................
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Añadida el 05 de agosto

याद करते हैं तुम्हें,बस भूल हम पाते नहीं।
लम्हा-लम्हा जीते हैं,साहिल को हम पाते नहीं॥

टूट न जाए कहीं यह सांसों का है सिलसिला ।
लड रहे हैं ज़िन्दगी से मर भी हम पाते नहीं..
याद करते हैं तुम्हे,बस भूल हम पाते नहीं॥

मन मेरा बोझिल तमन्नाओं की ख्वाहिश में यहां
दिल को समझाया बहुत,बस भूल हम पाते नहीं…
याद करते हैं तुम्हें,बस भूल हम पाते नहीं॥

राहों में तुम जब मिले दिल में मेरे कुछ-कुछ हुआ।
जाने क्या हो जाता है,हम बात कर पाते नहीं..
याद करते हैं तुम्हें,बस भूल हम पाते नहीं॥

ज़िन्दगी जी लेंगे यूं ही तेरी चाहत के सहारे।
प्यार के कुछ पल तुम्हारे,भूल हम पाते नहीं….
याद करते हैं तुम्हें,बस भूल हम पाते नहीं॥

तुम मिलो या न मिलो,तेरी याद मेरे दिल में है ।
दिल मेरा बेचैन है क्यों आके बहलाते नहीं…
याद करते हैं तुम्हें,बस भूल हम पाते नहीं॥

तेरी आंखों में भी हमने प्यार का समन्दर।
कौन सा वो राज़ है जो हमको बतलाते नहीं…
याद करते हैं तुम्हे,बस भूल हम पाते नहीं॥

क्या करें?कैसे करें?तेरे प्यार से शिकवा ।
दिल ने है सोचा बहुत पर कुछ भी कह पाते नहीं…
याद करते हैं तुम्हें,बस भूल हम पाते नहीं॥

तुमको चाहा,तुमको पूजा,क्या खता हमसे हुई?
ऐसा मेरा प्यार है, तुम भी पाते नहीं…
याद करते हैं तुम्हें,बस भूल हम पाते नहीं॥
Añadida el 05 de agosto ·


Fotos de ART OF KRISHNA




Dedicated to Romapada swami
"Most artwork courtesy of the Bhaktivedanta Book Trust International. www.krishna.com"


Añadida el 05 de abril

Añadida el 05 de abril


Atmananda



Atmananda: (sáns. vaiëòava). felicidad que se deriva de la experiencia del ser como una entidad espiritual diferente de la materia.




ISKCON desire tree - Sri Krishna Kathamrita - Bindu 34





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ISKCON desire tree - Sri Krishna Kathamrita - Bindu 034

ISKCON desire tree published this 04 / 25 / 2009

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