मोहन की मोहिनी अदाओं ने आज क्या कातिलाना अंदाज अपनाया हैं इसकी मंद मंद मुस्कनिया ने देखो आज कितना तडपाया हैं ऊपर से यह नयना मतवारे इसके इन्होने भी अपना जादू बिखराया हैं क्या कहें तोसे मोहन तेरी यादों ने आज कितना सताया हैं तेरी रसीली बांसुरी की तान रंग रसिया जाने क्या क्या करती हैं कमाल तेरे सिवा अब कोई दूजा दिखता नही तेरे सिवा कोई और बात करने को मन करता ही नही जिस बात में तेरी बात न हो वो कोई बात मायने न रखती हैं जिस सांस में तेरा नाम न हो वो सांस कोई मायने न रखती हैं मेरे मोहन तेरे सिवा कुछ भी नही तू हैं तो सब कुछ हैं वरना कुछ भी नही ...
खुशियाँ बाटो गम को पी लो इसी घड़ी है जिंदगी जी भर के जी लो !! कहाँ जाओगे ,किधर भागोगे ठोकरे खाओगे , दुख पाओगे जमाना कुछ अजीब है नजरिया बदल लो इसी घरी है जिंदगी जी भर के जी लो !! चलो रास्ते पर ठोकरों की ना करो परवाह रोते हुए को पल भर हंसा कर तो देख लो इसी घड़ी है जिंदगी जी भर के जी लो !! प्यार की दो बूंद मिली या ना मिली जो कुछ भी मिला सहेज कर रख लो इसी घड़ी है जिंदगी जी भर के जी लो !! घड़ी की सुइयां कुछ कह रही है हर पल इस पल को जी लो अपनी जेब में रख लो इसी घड़ी है जिंदगी जी भर के जी लो !! देखो तो बचपन प्यार से बुलाता है होठों पर प्यारी मुस्कान लिए आता है उस बचपन को अपनी बाँहों में भर लो छोटी सी है जिंदगी जी भर के जी लो !!
We are not put on this earth for ourselves, but are placed here for each other. If you are there always for others, then in time of need, someone will be there for you.
एक दंपत्ति ने जब अपनी शादी की 25 वीं वर्षगांठ मनाई तो एक स्थानीय समाचारपत्र का संवाददाता उनका साक्षात्कार लेने उनके घर जा पहुंचा। दरअसल वे दंपत्ति अपने शांतिपूर्ण और सुखमय विवाहित जीवन के लिये पूरे कस्बे में प्रसिध्द हो चुके थे। उनके बीच कभी कोई तकरार नाम मात्र के लिये भी नहीं हुई । संवाददाता उनके सुखी जीवन का राज जानने के लिये उत्सुक था। पति ने बताया - हमारी शादी के फौरन बाद हमलोग घुमने के लिये शिमला गये हुये थे। वहां हम लोगों ने घुड़सवारी की। मेरा घोड़ा तो ठीक था पर जिस घोड़े पर मेरी पत्नी सवार थी वह जरा सा नखरैल था। उसने दौड़ते दौड़ते अचानक मेरी पत्नी को नीचे गिरा दिया। पत्नी ने घोड़े की पीठ पर हाथ फेरते हुये कहा - यह पहली बार है । और फिर उसी घोड़े पर सवार हो गई। थोड़ी दूर चलने के बाद घोड़े ने फिर उसे नीचे गिरा दिया। पत्नी ने अबकी बार कहा - यह दूसरी बार है। और फिर उसी घोड़े पर सवार हो गई । तीसरी बार जब घोड़े ने उसे नीचे गिराया तो मेरी पत्नी ने घोड़े से कुछ नहीं कहा, बस अपने पर्स से पिस्तौल निकाली और घोड़े को गोली मार दी। मैं अपनी पत्नी पर चिल्लाया - ''ये तुमने क्या किया ! तुमने एक बेजुबान जानवर को मार दिया........! क्या तुम पागल हो गई हो ?'' पत्नी ने मेरी तरफ देखा और कहा - ''ये पहली बार है ................!''और बस, तभी से हमारी जिंदगी सुख और शान्ति से चल रही है।
this story dedicated to my sweet brother Syam Shobhit Rastogi...:)))
मुझ को अंदाज़ मुहब्बत के सिखाती हैं तुम्हारी आंखें और इन आँखों में नए कहब सजाती हैं तुम्हारी आंखें कितनी सुन्दर हैं और कितनी पियारी हैं तुम्हारी आंखें झील की तरह शफ्फाफ दिलकश नियारी हैं तुम्हारी आंखें चैन से हम को सुने ही नहीं देती हैं पल भर के लिए हम पे रूज़ गज़ब धाती हैं तुम्हारी आंखें तुबा तुबा है ये मदमस्त तुम्हारी आंखें तुबा ओ काहना इश्क के बीमार को यूँ लाचार बनती हैं तुम्हारी आंखें पहले घायल कर्तिएँ हैं और फिर दर्द इ इश्क देतिएँ हैं फिर भी दिल को मेरे जाने किओं भाति हैं तुम्हारी आंखें इस तरह बस्चुकी हैं मेरे दिल में तुम्हारी आंखें रूज़ खाबून में मेरे आकर सताती हैं तुम्हारी आंखें…
Prema-ruruksu:(sáns. vaiëòava). Srila Bhaktivinode Thakur explica que los devotos prema-ruruksu (aquellos que ansiosamente se esfuerzan para ascender a la región de prema) cantan 192 (3 x 64) rondas diarias. Si alguien tuviera que cantar cada ronda en 7.5 minutos, esas 192 rondas llenarían completamente sus 24 horas no dejándole tiempo para comer, dormir, ganar una manutención, o aun ir al baño. Si alguien aumentara la velocidad de su canto y completara cada ronda en 5 minutos, su canto le tomaría aun 16 horas dejándole solo 8 horas diarias para dormir, ganar una manutención, conmutar, etc. El punto es que este canto para la mayoría de personas no es posible. Pero aun eso es descrito por Srinvasacarya: sankhyā-pūrvaka-nāma-gāna,que uno debe mantener fuerza numérica mientras canta los santos nombres. Por lo tanto Srila Prabhupada misericordiosamente ha fijado un número de al menos 16 rondas diarias del canto Hare Krishna para nosotros. Este es un número que puede ser prácticamente cumplido diariamente junto con nuestros numerosos deberes materiales. Él también nos ha animado a incrementar nuestro canto mas allá de las 16 rondas en la medida que nuestro programa de actividades diarias nos lo permita.
Para volvernos perfectos en el canto debemos obedecer las órdenes del maestro espiritual. Por lo tanto al menos 16 rondas de japa mala deben ser completadas, si somos del todo serios en alcanzar la perfección espiritual. Los discípulos están siempre animados para cantar más si es posible, pero no menos.
This ebook is compiled by ISKCON desire tree for the pleasure of Srila Prabhupada and the devotee vaishnava community. Media - ebooks derived from vedic or hindu teachings. For morevisit http://www.iskcondesiretree.com
No hay comentarios:
Publicar un comentario